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02 December 2010

एक नेता जी फिल्मों के खिलाफ धुआंधार भाषण दे थे : ‘ आज की फिल्मों में गंदगी के सिवा है ही क्या ज्यादातर फिल्में सेक्स और मारधाड़ से भरी होती हैं। कहानी में कोई सिर पैर नहीं होता। भौंडे डायलॉग और अश्लील नाच गाने जबर्दस्ती ठूंसे जाते हैं। कभी -कभी तो किसी सीन का पूरी कहानी से दूर का भी वास्ता नहीं होता।जैसे एक औरत अपने पति का खून कर देती है। फिर चार आदमियोंसे एक साथ इश्क लड़ाती है। शराब के नशे में नाचती गाती है।खुली कार में जाती है तो कम कपड़ों में। ऊपर से बारिश जातीहै। उसके शरीर का एक एक अंग दिखाई देने लगता है। रात कोकार एक होटल से जा टकराती है। होटल को आग लग जाती है।होटल में ठहरे लोग बाहर की तरफ भागते हैं। किसी ने कपड़े पहनेहै किसी ने नहीं। लोग डर कर आपस में लिपट रहे हैं। छि छि :मुझे तो आगे कहते हुए शर्म आती है। समझ में नहीं आता किहमारा सेंसर बोर्ड आखिर करता क्या है ?’
‘ यह तो बाद की बात है ,’ भीड़ में से एक आवाज आई , ‘ पहलेयह बताइए कि यह फिल्म लगी कहां है ?’

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